एक बीज था गया बहुत ही गहराई में बोया
उसी बीज के अंतर में था नन्हा पौधा सोया
उस पौधे को मंद पवन ने आकर पास जगाया
नन्ही नन्ही बूंदों ने फिर उस पर जल बरसाया
सूरज बोला " प्यारे पौधे " ,निद्रा दूर भागो
अलसाई आँखें खोलो तुम उठकर बहार आओ
आँख खोल कर नन्हे पौधे ने तब ली अंगड़ाई
एक अनोखी नयी शक्ति सी उसके मन में आई
नींद छोड़ आलस्य त्याग कर पौधा बाहर आया
बहार का संसार बड़ा ही अद्भुत उसने पाया.
एक अनभिज्ञ शिशु की भांति मेरा चंचल मन भी कभी कभी मुझसे पूछ बैठता है.....इस संसार में जीव की उत्पति का उद्देश्य क्या है ...जीवन का अर्थ क्या है ....लौकिक शक्ति का मूल का है....सृष्टि की पराकाष्ठ क्या है...दृष्टि की अनभिज्ञता क्या है....आत्मा का परिचय क्या है....कुछ प्रश्न मन को विचलित कर देते हैं...किन्तु ...जैसे वाणी की मिठास सत्य है...पैमानों से परे है ....उसी भांति ....आत्मा ...सृष्टि....जीव....सब पैमानों से परे हैं......उद्धेश्य है अलौकिक शक्ति में विलीन हो जाना .....
Wednesday, May 12, 2010
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बहुत अच्छा लिखा है। हमेशा इसी तरह लिखते रहना।
ReplyDeletedo not hide your creative side......
जीव उत्त्पत्ति का उद्येश्य 'इस सत्य का बोध कि संसार नश्वर् है'
जीवन का अर्थ 'आत्मज्ञान है'
लौकिक शक्ति का मूल 'बुद्धि है'
सृष्टि की पराकाष्ठा 'शून्य है'
दृष्टि कि अनिभिज्ञता 'अज्ञान है'
आत्मा का परिचय 'ब्रह्म है'
bahut sunder
DeleteSadhu sadhu....
ReplyDeletedo sadhu....
ReplyDeleteawesome poem it was i enjoyed it very muchhhhhh!!
ReplyDeleteThanks
DeleteThis poem was in my text book...in my class syllabus... while I was little... always loved this poem. Does anybody know who is the poet
ReplyDeletehmmmmm sweet memories
DeleteThis poem was in my text book...in my class syllabus... while I was little... always loved this poem. Does anybody know who is the poet
ReplyDeleteVenkatesh Chandra Pandey
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